Published On: Mon, May 23rd, 2016

ताज महलः एक ज्योतिर्लिंग मंदिर-सौ प्रमाण (भाग एक) – Agniveer

आपकी सारी रूमानियत भरी कल्पनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए और ताज महल पर लिखी गई सारी कविताओं, गज़लों, गानों, शायरियों इत्यादि को भी झुठलाने के लिए मुझे क्षमा करें. सच तो यह है कि ताज महल को शाहजहां के प्रेम का
प्रतीक मानने की संभावना उतनी ही है जितनी कि अजमल कसाब को मुम्बई सीएसटी का रचनाकार मानना. क्योंकि उसने कुछ घण्टों के लिए मुम्बई सीएसटी को अपने कब्जे में कर लिया था.

हम यहां ऐसे सौ प्रमाण देंगे जो ताज महल को शिव मंदिर सिद्ध करते हैं, जिसे मानवता पर कलंक बर्बर आतंकवादी शाहजहां ने बलात् अधिगृहित कर लिया था.

पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपने जीवन काल में इन सभी सत्यों को उजागर करने का महत्तवपूर्ण काम किया किन्तु इस तुष्टीकरण के युग में उनकी आवाज को दबाने का काम, उनके मित्रों और अमित्रों दोनों की ओर से समान रूप से हुआ. गैलेलियो की तरह ही जिसे, पृथ्वी सूर्य की प्रदक्षिणा करती है, इस सच्चाई को बताने का दण्ड़ मिला था. हम यहां उनकी खोज के कुछ भाग प्रस्तुत कर रहे हैं.

जैसा कि पर्यटकों को बताया जाता है – ताज महल शाहजहां की बनाई हुई एक मजार है,
हालांकि सच्चाई यह है कि ताज महल ‘तेजो महालय’ नामक एक शिव मंदिर है जिसको पांचवी पीढ़ी के मुगल शासक शाहजहां ने जयपुर नरेश से बलपूर्वक छीन लिया था. इस कारण ताज महल को एक मंदिर स्थापत्य माना जाना चाहिए न कि एक मजार. इस में काफ़ी गहरा अंतर है.

आप ताज महल को थोपी गई कहानी के आधार पर सिर्फ एक मजार के रूप में देखकर उसके कद, उसकी भव्यता, विशालता और उसके सौंदर्य की बारीकियों पर गौर नहीं कर सकते. लेकिन जब आपको यह कहा जाता है कि आप एक मंदिर को देखने जा रहे हो तब आप उसके गलियारों, संरक्षक दिवारों को जो अब ध्वस्त हो चुकी हैं, टेकड़ियों, खंदकों, पगथियों, फव्वारों, सुंदर बगीचों, सैकड़ों कमरों, कमान वाले बरामदों, अट्टालिकाओं, बहुमंजिली मीनारों, गुप्त और बंद किए हुए कक्षों, अतिथी कक्षों, अस्तबल, गुम्बद पर जड़े गए त्रिशूल और गर्भगृह की बाह्य दिवारों पर गोदे गए ‘‘ के चिन्ह को जिनकी जगह अब मजारों ने ले ली है, अनदेखा नहीं कर सकते.

नाम

1. ताज महल नाम का उल्लेख औरंगजेब के काल तक किसी भी मुगल दरबारी दस्तावेजों, वृत्तांतों या ऐतिहासिक घटनाक्रमों में कहीं नहीं मिलता. इसलिए इसे ‘ताज-इ-महल’ कहने की कोशिश बहुत ही हास्यास्पद है.

2. ताज महल का अंतिम पद ‘महल’ इस्लामिक है ही नहीं बल्कि संस्कृत भाषा के शब्द ‘महालय’ का अपभ्रंश है. क्योंकि अफ़गानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी इस्लामिक देश में ‘महल’ नामक कोई इमारत दिखाई नहीं पड़ती.

3. यह कहना कि इस इमारत का नाम ताज महल इस में दफ़नाई गई मुमताज़ महल के नाम पर पड़ा, कम से कम दो बातों में असंगत है. पहली बात, उसका नाम मुमताज महल नहीं बल्कि मुमताज़-उल्-ज़मानी था और दूसरी यह कि उसके नाम के प्रथम दो अक्षर ‘मुम्’ उड़ा कर शेष दो अक्षरों से इमारत का नाम रखना समझ में नहीं आता.

4. फ़िर भी यदि मुमताज़ में आए ‘ताज़’ पर ही इमारत का नाम होता, तो वह ‘ताज़ महल’ होना चाहिए न कि ‘ताज महल’.

5. शाहजहां के समय के कुछ यूरोपीय पर्यटक, इस स्थापत्य को ताज-ए-महल कह कर संबोधित करते हैं जो कि वास्तव में परंपरा के अनुरूप है क्योंकि युगों पुराना संस्कृत नाम ‘तेजो महालय’ इसे शिव मंदिर ही घोषित करता है. शाहजहां और औरंगजेब ने प्रामाणिकता से संस्कृत नाम का प्रयोग टाला है और उसे मात्र पवित्र कब्र ही बताया है.

6. मजार का अर्थ भव्य इमारत नहीं बल्कि उस के अंदर बनी कब्र को ही जानना चाहिए. इस से लोगों को अनुभूति होगी कि सभी मृत मुस्लिम दरबारियों और राजसी लोगों जैसे हुमायूं, अकबर, मुमताज़, एतमाद्-उद्-दौला, सफ़दरजंग इत्यादि मुसलमान बादशाहों को हिन्दू भवनों और मंदिरों को ही बलात् हस्तगत कर के दफ़नाया गया है.

7. यदि ताज कोई दफ़नाने की जगह होती तो उसके साथ ‘महल’ अर्थात् ‘आलय’ जैसा नाम क्यों लगाया जाएगा?

8. जब ताज महल मुगल दरबारों में कहीं परिभाषित हुआ मिलता ही नहीं, तब उसके लिए किसी भी मुगल खुलासे को खोजना व्यर्थ ही होगा. इस के दोनों पदों- ‘ताज’ और ‘महल’ का मूल संस्कृत में ही है.

 

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