Published On: Tue, Feb 17th, 2015

भोले की ‘अर्धकाशी’ माउंटआबू, शिव के विविध शिवालयों की नगरी | Zee News Hindi

राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंटआबू खुद को राजस्थान के पांच पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट के रूप में खुद को शुमार करता है। लेकिन स्कंद पुराण के मुताबिक यह आध्यात्मिक नगरी भगवान शंकर की उपनगरी भी है इसलिए इसे अर्धकाशी भी कहा जाता है। माउंटआबू में भगवान शंकर के प्राचीन मंदिर शिव के विविध शिवालयों के रुप में जाने जाते है। हर शिवालय की अपनी महिमा है । हर शिवालय का अपना इतिहास है । लेकिन सावन के महीने में यह नगरी भोले के रंगों में रंग जाती है।

 

 

सावन के महीने में यहां की रौनक बस देखते ही बनती है। यहां इस मौके पर भोले के विविध स्वरूपों का दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में आते है। एक आंकड़े के मुताबिक सावन के महीने में यहां लाखों श्रद्धालु हर हर महादेव और बम बम भोले का शंखनाद करते हुए भोले के दर्शन के लिए आते है। आईए भोले की इस उपनगरी की चुनिंदा शिवालयों के बारे में जानते हैं जिसकी महिमा पुराणों ने भी गाई है और जहां श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है।

 

स्कंद पुराण के अर्बुद खंड माउंटआबू को भगवान शंकर की उपनगरी भी कहा जाता है। यहां छोटे-बड़े मिलाकर भगवान शंकर के 108 मंदिर है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि वाराणसी के बाद भगवान शंकर अपने अलौकिक स्वरुपों में माउंटआबू में वास करते हैं।

 

सबसे पहले चर्चा करेंगे मशहूर अचलगढ़ मंदिर की जो दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग की नहीं बल्कि उनके अंगूठे की पूजा होती है,  तभी इनका नाम अचलगढ़ पड़ा। अचलगढ़ किला मेवाड़ के राजा राणा कुंभा ने एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया था। परमारों एवं चौहानों के इष्टदेव अचलेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर अचलगढ़ में ही है। पहाड़ी पर 15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है।

 

 

माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर पौराणिक मंदिर है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। भगवान शिव के अंगूठे के निशान यहां आज भी देखे जा सकते है। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है। सदियों से अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउन्टआबू के पहाड़ को थाम रखा हैं और जिस दिन यह अंगूठे का निशान गायब हो जायेगा माउंट आबू पहाड़ खत्म हो जाएगा ।

 

भगवान शिव के अर्बुदांचल में वास करने का स्कंद पुराण में चर्चा है। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में ये बात सामने आती है कि भगवान शंकर और भगवान विष्णु ने एक रात पूरे अर्बुद पर्वत की सैर की। यह तीर्थ वास्थान जी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओँ के मुताबिक यहां भगवान विष्णु भगवान शंकर के मेहमान बने थे। भगवान विष्णु को यह जगह इतनी भाई कि उन्होंने अर्बुदांचल की पहाड़ियों पर सैर करने का फैसला किया।

 

माउंटआबू में ही स्थित सोमनाथ संत सरोवर का जिक्र शिव पुराण और स्कंद पुराण मे भी आता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर की यहां हर सावन के हर सोमवार को विशेष कृपा होती है । भगवान शंकर का यहां एक प्राचीन भव्य मंदिर भी है। भगवान शंकर के यहां 12 ज्योतिर्लिंग भी बनाए गए है। शिवपुराण में बारह ज्योतिर्लिंगों की महिमा बताई गई है। लेकिन माउंटआबू के सोमनाथ धाम में आप एक साथ 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन भी कर सकते हैं।

 

यहां स्थित बालाराम महादेव मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरुप में वास करते है। यहां के बारे में कहा जाता है कि भगवान शंकर के जटा से निकली हुई गंगा की धारा यहां भी बहती है। गंगा के पानी का स्रोत कहां से है यह अबतक एक रहस्य बना हुआ है। ये जगह माउंटआबू और राजस्थान की सीमा पर है। ये मंदिर पहाड़ियों के मनोरम स्थान पर बसा हुआ है। यहां भगवान शंकर के ऊपर गोमुख से गंगा की अमृतधारा बहती है। ये स्थान अदभुत है जहां भगवान शंकर के साथ गोमुख से बहती गंगा के भी दर्शन होते हैं।

 

 

साथ ही माउंटआबू में लीला धारी महादेव मंदिर भगवान शिव का स्वयंभू मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर माउंटआबू से 65 किलोमीटर दूर मंडार में स्थित है। ये मंदिर 84 फीट ऊंचा है। इस मंदिर का उल्लेख शिव पुराण में भी आता है। मंदारशिखर पर्वत पर ये मंदिर स्थित है। यहां के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर यहां कई लीलाओं के रुप में वास करते है। यहां एक शिवलिंग जमीन पर स्थित है। ये चट्टानों से बना शिवलिंग है।

 

अर्बुद नीलकंठ मंदिर भी माउंटआबू का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है। अर्बुदा देवी तीर्थ के पास ये मंदिर है जहां नीलम पत्थर से बना हुआ शिव मंदिर है। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर को राजा नल और दमयंती ने बनवाया था। इस मंदिर तक पहुचने के लिए श्रद्धालुओं को 350 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। नीलकंठ मंदिर नाम इसलिए है कि भगवान शंकर का मंदिर और शिवलिंग नीलम पत्थर से बना हुआ है।

 

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