Published On: Sat, Mar 5th, 2016

सिंधु घटी सभ्यता जितनी पुरानी है वाराणसी,आई आई टी खडगपूर के शोधपत्रों से : टाइम्स ऑफ़ इंडिया

यह हिंदुत्व के लिए एक बड़ी ही  निर्णायक खोज है . जिससे औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा रची गयी  आर्यन द्वारा भारत पे चढ़ाई की काल्पनिक कहानियों का भंडाफोड़ हो जाना चाहिए , जो उन्होंने अपने रक्त पिपासु आक्रमणों के मनोविज्ञानिक समर्थन में लिखी थी . विज्ञानं अब हमारे परंपरागत तथ्यों की पुष्टि कर रहा है कि विश्व  में मानव आबादी  सबसे पहली बार शहर के रूप वाराणसी में बसी |
यह विज्ञानं और आस्था के मिलन और तकनीक द्वारा मिथकों की पुष्टि  का उत्तम उदाहरण है . आई आई टी खड़गपुर द्वारा संचालित विस्तृत शोध  ,जो जी-पी- एस जैसी  अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर के की गयी है | वाराणसी के  अतीत को खंगाल रही है | और ऐसा संकेत दे रही है की यह पवित्र शहर सिंधु घाटी सभ्यता के समय से , आज से करीब ६००० साल पहले से ही मानव आबादी का आश्रयस्थल बना रहा है|
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा निधिबद्ध(पहले चरण में २० करोड़ निर्गत ) इस परियोजना, ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का भी ध्यान आकर्षित किया है | प्रधान मंत्री ने वाराणसी में रविवार को इस परियोजना के प्रगति को पता लगाने की बात कही, इसके लिए वो आई आई टी खड़गपुर के प्राध्यापकों से मिलेंगे और इसके सम्भावना और व्यापकता  की चर्चा करेंगे |
यह परिणाम आई आई टी – खड़गपुर के सात विभागों के सामूहिक रूप से  विस्तृत भू – अन्वेषण कार्य का सञ्चालन करने से आया है (जी पी एस तकनीक द्वारा ) , जिससे उन्होंने उन सारे अवस्था को समझा और अनुरेखित किया जिससे होके इस भूखण्ड पर बसी सभ्यता ने प्रगति की , और किस तरह विश्व के अन्य  जगहों पर बसे मानवीय आबादी अथवा  शहरो से अलग, उस समय से आज तक अपने स्वरुप में और विकास में स्थायित्व और निरंतरता बनाए रखी है और जीवित है |
शोधकर्ताओं ने आंकड़े जुटाने के लिए  १०० मीटर का गहरा छिद्र समूचे वाराणसी में किया, जिससे कम से कम वे इस  निष्कर्ष को प्रमाणित कर सकें  कि २००० बी सी तक यहाँ  मानव आबादी  निरन्तर बसी हुई  थी | अत्यधिक संकेत इस बात के हैं कि जब  सारे आंकड़े इकट्ठे हो जायेंगे, तब उनसे प्राप्त प्रमाणों के आधार पर स्पष्ट रूप से इस समय को और पीछे, करीब ४५०० बी. सी तक धकेला जा सकता हैं |
सभ्यता का सबसे पुराना हिस्सा वाराणसी के  गोमती संगम वाले इलाके में मिला है ,जो वहां के  भूतल के गहरी सतहों के परीक्षण  में प्राप्त संकेतों से स्पष्ट हुआ |
शायद अब वो समय आ गया है कि हम भारत के इतिहास को फिर से देखे | आई आई टी खड़गपुर इस दिशा में एक विस्फोटक घोषणा करने जा रही है | यह वाराणसी के पिछले  ६००० साल  को फिर से देख रही है और इसे ज्यादा पुरातन तो  नहीं पर महान सिंधु घाटी सभ्यता के साथ  सामायिक घोषित  करने जा रही है | इसके अलावा आई आई टी – खड़गपुर के सात विभाग जो इस परियोजना पर सामूहिक रूप से कम कर रहें हैं, वे उन सारे अवस्था को समझ रहें है और अनुरेखित कर रहें है  जिससे हो के इस सभ्यता ने प्रगति की, और किस तरह विश्व के अन्य जगहों पर बसे मानवीय आबादी, शहरो और पुरातन सभ्यताओं जो आज मिट चुके हैं, से अलग, उस समय से आज तक जीवित सभ्यता के रूप में  वाराणसी ने स्थायित्व और निरंतरता बनाए रखी है |
पिछले भू अन्वेषण कार्य, जो ब्रिटिश जियोलाजिकल सर्वे के साथ मिल कर किया गया, ने पहले से ही, वेदों और काशी पुराण में वर्णित वन ” नैमिषारण्य ” की मौजूदगी स्थापित और प्रमाणित कर दी है | जिस वन-प्रदेश को आज के सालों तक काल्पनिक माना जाता रहा था |
शोधकर्ता कलकत्ता से वाराणसी होते हुए प्रयाग (इलाहाबाद ) तक जल मार्ग निकालने का प्रयास कर रहें है| इस परियोजना जिसका नाम “सिंधी ” हैं, उसके प्रमुख और स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग”  के वरीय प्राध्यापक जॉय सेन ने कहा ” क्योंकि पुराने समय से ही लोग इस जल मार्ग का इस्तेमाल करते आए हैं पर रेलवे के आगमन से इसका इस्तेमाल बंद हो गया | हम अब इसको स्थापित करने जा रहें हैं , दूसरे विभाग जैसे ह्यूमैनिटी  एंड सोशल साइंस, कंप्यूटर साइंस, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेली कम्युनिकेशन औरओशियनोग्राफी भी  इस परियोजना के हिस्से हैं| सूत्रों से पता चला हैं की यह जल मार्ग पर्यटकों के लिए विकसित किया जायेगा |
अलग अलग धरोहरों से भरी हुए रास्तों को चिन्हित किया गया हैं जो काशी के पांच सबसे पुरानी घाट – अस्सी, केदार, दशाश्वमेध, पंचगंगा और राजघाट तक  जाते हैं | परियोजना के कार्यों का विवरण देते हुए जॉय सेन ने कहा कि “हम सभी धर्मो के पुराने योगियों और आध्यात्मिक नेताओं के आश्रमों को चिन्हित कर रहें हैं जो उन रास्तों पर हैं | उनमे से कुछ लुप्त हो चुकें हैं तो कुछ जीर्ण शीर्ण अवस्था में हैं | हम उन सबको वापस लाने और पहले जैसा करने का हर संभव प्रयास करेंगे ” |
परियोजना का एक बड़ा हिस्सा, पिछले साल अगस्त में शुरू हुआ था, जिसका उदेश्य सारनाथ से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तक हरियाली के किनारे तैयार करने और इनके बीच के छितराए हरित भूभाग और जलाशयों को पुराने स्वरुप में वापस लाना है | प्रयास ये है कि उन क्षेत्रों से अतिक्रमण और अवैध निर्माण को हटाया जा सके जिससे पुराने पारिस्थितिक तंत्र को वापस लाया जा सके | वाराणसी सभी धर्मों और उनके महान पुरुषों का गढ़ रहा है, इस परियोजना में में उनको  विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया जाएगा | प्रयास ये भी है की जो क्षेत्र वृद्धाश्रम और विधवा आश्रम से भरे पड़े है वहां विशेष क्षेत्र की स्थापना की जाये |
भाषा, संगीत और महत्वपूर्ण व्यक्तित्व “संधि ” में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे | पुराने ग्रन्थ जैसे काशी पुराण, स्कन्द पुराण, महाभारत और रामायण और बौद्ध व्याख्यान अंगुत्तरनिकाय, काशी और काशीराज की विवरण के लिए पढ़े जा रहें हैं, जिन्हे अब तक केवल पौराणिक कथा माना जा रहा था |

परियोजना के प्रमुख जॉय सेन ने कहा कि “हम हर दिन आश्चर्य का सामना कर रहें है | जिसे अब तक केवल कथा और मिथक का हिस्सा माना जा रहा था अब वह हमारा प्रमाणिक इतिहास के रूप में स्थापित हो रहा है, और यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है ” |

 

Source : http://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata/Varanasi-is-as-old-as-Indus-valley-civilization-finds-IIT-KGP-study/articleshow/51146196.cms