Published On: Thu, May 26th, 2016

ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग तीन) – Agniveer

दस्तावेजीय प्रमाण

18. स्वंय शाहजहां के दरबारी अभिलेख बादशाहनामा (पृष्ठ 403, खंड1) में कहा गया है कि मुमताज़ को दफ़नाने के लिए जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह से एक अपूर्व वैभवशाली गुम्बदयुक्त भव्य प्रासाद (इमारत-ए-आलीशान वा गुम्बजे) लिया गया. जो कि राजा मानसिंह के महल के नाम से विख्यात था.

19. ताज के बाहर लगे पुरातत्वीय फ़लक के अनुसार, ताज महल एक मकबरा है. जिसका निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज़ महल के लिए सन् 1631 से सन् 1653 तक सतत बाईस वर्षों तक करवाया. यह फ़लक अपने आप में ऐतिहासिक घपले का एक नमूना है.

पहला, इस फ़लक पर किए गए दावे का कोई आधार नहीं बताया गया.

दूसरा, यह कि उस महिला का नाम मुमताज़-उल्-ज़मानी था, न कि मुमताज़ महल.

और तीसरा, यह जो बाईस वर्ष का काल दिया गया है वह किसी मुस्लिम इतिहास से नहीं बल्कि एक किसी ऐरे-गैरे फ्रेंच प्रवासी टैवर्नियर की ऊलज़लूल टिप्पणियों से लिया गया है.

20. औरंगज़ेब द्वारा अपने पिता शाहजहां को लिखित पत्र, कम से कम तीन इतिवृत्तों – ‘आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ई-अकबराबादी (सईद अहमद संपादित, आगरा,1931, पृष्ठ 43, पादटिप्पणी 2) में पाया जाता है. सन्1652 के लिखे इस पत्र में औरंगजेब ने स्वंय कहा है कि – मुमताज़ की काल्पनिक दफ़न भूमि के परिसर की कई सात मंजिला इमारतें इतनी पुरानी हो गई थीं कि उन में से पानी रिसने लगा था और गुम्बद के उत्तरी भाग में दरार पड़ गई थी. अतः औरंगजेब ने तत्काल अपने खर्चे से इन इमारतों की मरम्मत का आदेश दिया और शाहजहां को बाद में इसकी विस्तार से मरम्मत करवाने की सलाह दी. इससे सिद्ध होता है कि शाहजहां के शासन काल में ही ताज महल परिसर इतना पुराना हो गया था कि उसकी तत्काल मरम्मत करवानी पड़ी.

21. जयपुर के एक पूर्व महाराजा के पास, उनके निजी संग्रह ‘कपड़ द्वारा’ में  ताज भवन समूह की मांग करने वाले शाहजहां के दो लिखित हुक्म,  तारीख़-दिसंबर 18,1633 (जिनके आधुनिक क्रमांक 176 और 177 हैं) रखे हुए हैं. उस स्थापत्य का हथियाया जाना इतना स्पष्ट था कि इससे उस समय के जयपुर के महाराजा को यह दस्तावेज जनता के सामने रखने में शर्म महसूस होती थी.

22. राजस्थान के बीकानेर स्थित अभिलेखागार में शाहजहां द्वारा जयपुर नरेश जयसिंह को संबोधित अन्य तीन फ़रमान (आदेश) रखे हुए हैं. उस में शाहजहां ने जयसिंह को मकराना की खानों से संगमरमर और उसे काटने और गढ़ने वाले संगतराशों को भेजने का आदेश दिया है.
स्वाभाविक रूप से जयसिंह ताज महल को कपट पूर्वक हथिया लेने से इतना क्रोधित था कि उसने ताज महल में हिंदू अंशों को नष्ट कर, कुरान की आयतों को जोड़ने के लिए और बनावटी कब्र बनाकर उसे और अधिक भ्रष्ट करने के लिए संगमरमर और संगतराश देने से मना कर दिया.  शाहजहां की इस संगमरमर और संगतराश देने की मांग को जयसिंह ने जले पर नमक के समान  समझा.अतः उसने और संगमरमर देने से मना तो किया ही परन्तु कोई संगतराश वहां पहुंच न जाए इसलिए उन्हें अपनी हिरासत में भी रखा.

23. मुमताज़ की मृत्यु के दो वर्ष के भीतर ही शाहजहां ने राजा जयसिंह को संगमरमर की मांग करनेवाले तीन आदेश भेजे. यदि शाहजहां ने सच में बाईस वर्षों तक ताज महल का निर्माण करवाया होता, तो संगमरमर की आवश्यकता 15 या 20 वर्षों के बाद पड़ती, न कि मुमताज की मृत्यु के तुरंत बाद.

24. इतना ही नहीं, इन तीनों पत्रों में कहीं भी न ताज महल, न मुमताज़ और न ही उसे दफ़नाने का कोई उल्लेख है. उसकी लागत तथा पत्थर की मात्रा का भी कोई उल्लेख नहीं है. इससे पता चलता है कि केवल कुछ जोड़ने के काम के लिए और कुछ हेर-फ़ेर करने के लिए संगमरमर की मामूली मात्रा ही चाहिए थी.

 

Source: ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग तीन)