Published On: Mon, May 30th, 2016

ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग सात) – Agniveer

विसंगतियां

40. संगमरमरी ताज की पूर्व और पश्चिम दिशाओं में दो भवन खड़े हैं- जो कि आकार, परिमाण और प्रारूप में बिलकुल एक जैसे हैं. फ़िर भी पूर्व भवन को सामुदायिक भवन बताया जाता है जब कि पश्चिमी भवन मस्जिद कहलाती है. मूलतः बिलकुल भिन्न प्रयोजन के लिए बनाए गए दो भवन, एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इससे पता चलता है कि शाहजहां द्वारा ताज को हड़पने के बाद से ही पश्चिमी भवन को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था. आश्चर्य की बात है कि इस पश्चिमी भवन वाली मस्जिद में एक भी मिनार नहीं है. वास्तव में दोनों भवन – तेजो महालय मंदिर के स्वागत भवन थे.

41. उस तरफ़ कुछ ही गज़ की दूरी पर एक नक्कार खाना भी है- जो कि इस्लाम में एक अक्षम्य असंगति है. नक्कार खाने का इतना निकट होना इस बात का संकेत है कि पश्चिमी भवन असल में मस्जिद थी ही नहीं. इसके विपरीत, नक्कार खाने का होना – हिंदू मंदिरों और महलों का विशेष लक्षण है, क्योंकि हिंदुओं के दैनिक जीवन में प्रातः-सायं कार्यों का प्रारंभ आवश्यक रूप से सुमधुर संगीत से होता है. 42. कब्र के बाहरी कक्ष की संगमरमरी दिवारों पर ‘शंख’ और ‘ॐ’ की आकृतियां उकेरी गई हैं. कब्र के अंदरुनी कक्ष में मौजूद अष्टकोणी संगमरमरी जाली के शीर्ष किनारों पर भी गुलाबी कमल दर्शाए गए हैं. शंख, ॐ और कमल आदि -हिन्दू देवताओं और मंदिरों से जुड़े पवित्र चिन्ह हैं.

43. आज जहां मुमताज़ की कब्र है, वहां कभी हिंदुओं के आराध्य देव शिव जी का प्रतिक चिन्ह ‘तेज लिंग’ स्थापित था. ‘तेज लिंग’ के चारों ओर प्रदक्षिणा करने के पांच मार्ग थे. संगमरमरी जाली के चारों ओर से, फ़िर कब्र वाले कक्ष के चारों ओर बने विस्तीर्ण संगमरमरी गलियारों से और संगमरमरी चबूतरे पर बाहर से भी परिक्रमा की जा सकती थी. परिक्रमा करते समय ‘देवता’ के दर्शन होते रहें, इसलिए हिंदुओं में झरोखे रखने की परंपरा रही है, ताज में मौजूद परिक्रमा मार्गों में भी ऐसे झरोखे बने हुए हैं.

44. ताज के गर्भ-गृह में चांदी के द्वार, सोने के जंगले और रत्न तथा मोती जड़ित संगमरमरी जालीयां लगी हुई थीं, जैसी की हिंदू मंदिरों में होती हैं. यह इस सारी धन-संपदा का प्रलोभन ही था – जिसके लिए शाहजहां ने अपने अधिनस्थ उस समय के असहाय जयपुर नरेश जयसिंह से ताज को छीन लिया था.

45. पीटर मंड़ी नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि सन् 1632 में (मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही) – उसने मुमताज़ की कब्र के चारों ओर रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले लगे हुए देखे थे. यदि ताज के निर्माण में बाईस वर्ष लगे होते, तो पीटर मंड़ी द्वारा मुमताज़ की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही यह बहुमूल्य रत्नजड़ित सुवर्ण जंगले नहीं देखे गए होते. क्योंकि ऐसे बहुमूल्य सामान इमारत का निर्माण पूरा होने पर ही लगाए जाते हैं. इससे पता चलता है कि मुमताज़ की कब्र सुवर्ण जंगलों के बीच मौजूद शिवलिंग को उखाड़ कर बनाई गई थी. बाद में यह सुवर्ण जंगले, चांदी के द्वार, मोती की जालीयां और रत्न जड़ित सामान इत्यादि सभी शाहजहां के खजाने में जमा कर दिए गए.
अतः मुगलों द्वारा ताज का हड़पना एक बहुत ही अत्याचारी लूट की घटना है, जिसने शाहजहां और जयसिंह के बीच वैमनस्य पनपाने का काम किया.

46. मुमताज़ की कब्र के चारों ओर के संगमरमरी फर्श पर अब भी छोटी-छोटी चकतियों से बने आकार देखे जा सकते हैं – जो उस स्थान को चिन्हित करते हैं, जहां कभी सुर्वण जंगलों के आधार फर्श में गड़े हुए थे. इससे यह भी पता चलता है कि यह सुर्वण जंगले आयताकार लगे हुए थे.

47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटक रही है, जिस अब एक दिपक लटका दिया गया है. शाहजहां द्वारा हड़पने से पूर्व, इस जंजीर के सहारे एक ‘जलहरी’ लटका करती थी, जिससे शिव लिंग पर लगातार जल सिंचन हुआ करता था.

48. ताज की इस पूर्व हिंदू परंपरा से ही यह झूठी बात गढ़ ली गई है कि सर्दियों में पूर्णिमा की रात को शाहजहां के आंसू इस कब्र पर टपका करते हैं.

 

Source: ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग सात)